5 बाते जो हर फाउंडर को पता होनी चाहिए - अश्नीर ग्रोवर

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भारतीय बिज़नेसमैन अश्नीर ग्रोवर फिनटेक कंपनी भारतपे के पूर्व मैनेजिंग डाइरेक्टर और को-फाउंडर हैं। वह रीयलिटी टीवी शो शार्क टैंक इंडिया के एक शार्क टैंक(इंवेस्टर) भी हैं। यहां पर हम उनकी किताब दोगलापन से ऐसे पांच सबक सीखेंगे जो एक फाउंडर के रूप में आपको पता होने चाहिए।

आइए, अब जरा मुश्किल हिस्से पर बात करते है की एक फाउंडर के तौर पर अपनी नाकामियों से अश्नीर ग्रोवर ने क्या सबक सीखे! 

"अगर मैं पीछे पलटकर देखता हूँ, इन नाकामियों की वजह से ही शायद मुझे आधे रास्ते में ही रुकना पड़ गया। वही कारण है जिनकी वजह से मुझे लगता है कि मेरा काम अधूरा रह गया। तो अब मैं उन पाँच चीजों की जानकारी आपको दे रहा हूँ, जो आपको नहीं करना चाहिए, और अगर करना ही पड़े तो इसे अलग तरीके से करें।"

1. फाउंडर के तौर पर यह न भूलें कि खेल सिर्फ आपके और आपके कस्टमर के बीच है।

"एक कारोबार चलाने का मूल सिद्धांत इस समझ से जुड़ा है कि इसमें केवल दो खिलाड़ी महत्वपूर्ण हैं, आप और आपके कस्टमर। बस। आप कस्टमर को एक प्रोडक्ट या समाधान उपलब्ध करवाते है और ग्राहक आपको इसके लिए पैसे देता है। बाकी सभी - और जिसमें आपके को-फाउंडर, आपके कर्मचारी, आपके इन्वेस्टर, रेगुलेटर, थर्ड पार्टी वेंडर, कंपीटिटर सब- किसी न किसी रूप में आपके और आपके कस्टमर के बीच आते हैं। बेशक, उनमें से हरेक आपके पास कुछ भी आने से पहले ही आपकी कमाई का एक हिस्सा उठा लेगा। ऐसे में, कारोबार में कूदने से पहले, आप ख़ुद से कुछ सवाल पूछिए : क्या आप उनको साथ लाने में सहज है? क्या आप उनको हिस्सा देने के लिए तैयार हैं? उनका हिस्सा देने के बाद जो बचेगा उसे लेकर क्या आप उत्साहित हैं और क्या कुल मिलाकर जो अनिश्चितता होगी उसके लिए रोमांचित हैं? सफर में हर कोई अपना किरदार निभाता है, लेकिन बेशक असली कहानी तो आपके और आपके कस्टमर की ही होती है। अगर आप एक कामयाब बिज़नेस चलाना चाहते हैं, तो इस बात को गाँठ बाँधना होगा।"

2. इन्वेस्टर आपसे ऊपर नहीं, न ही वह प्रमाणपत्र है।

"एक ख़ानदानी कारोबार में, फाउंडर का केपीआइ (की परफॉर्मेंस इंडिकेटरः प्रमुख प्रदर्शन संकेतक) उनका नफा होता है और उनकी 'औकात, यानी समकक्ष व्यवसायियों के बीच उनकी स्थिति, उस नफे की माला पर निर्भर करती है। नए जमाने के कारोबारों की बात करें, तो यहाँ का केपीआइ वैल्यूएशन यानी मूल्याँकन बन गया है। एक फाउंडर के तौर पर, आप स्केल डिलीवर कर सकते हैं, लेकिन वैल्यूएशन डिलीवर करने का काम इन्वेस्टर का है। वैल्यूएशन के पीछे भागने की अपनी हड़बड़ी में, आप दो बड़ी गलतियाँ कर बैठते हैं : एक, आप इन्वेस्टर को इस इकोसिस्टम में खुद से ऊँचा व्यक्ति मान लेते हैं; और दो, आप यह भूल जाते हैं कि कहानी आपके और कस्टमर की है। यह याद रखना अहम है कि इन्वेस्टर सिर्फ एक अन्य विक्रेता ही है, वह केवल उसी तरह पूंजी लगा रहा होता है जैसे कोई तकनीक या श्रम लगाता है। आपने उसको भगवान बना लिया है। यह गलती मैंने की थी, और आपको इससे हर तरह से बचना चाहिए। बेशक, हम एक पूंजी की कमी वाली इकोनॉमी में रह रहे हैं, तो ऐसे में यह वाली सोच लागू करना थोड़ा मुश्किल ज़रूर है, लेकिन कामयाबी इस बात से कभी निगाह नहीं हटाने में ही छिपी है।"

3. अपने परिवार को बोर्ड में एक सीट जरूर दें- इसमें पश्चिम के आर्म्स लेंथ के सिद्धांत या रिलेटेड पार्टी के सिद्धांत पर अमल न करें।

(आर्म्स लेंथ सिद्धांत में दो अनजाने या एक दूसरे से बिना किसी जुड़ाव वाले लोग मिलकर कारोबार करते हैं)

"पश्चिमी या विकसित देशों में जैसे ही बच्चा अठारह साल का होता है, उसे अपनी जिंदगी जीने के लिए दुनिया में बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। बेशक, वह छुट्टियों पर घर आने के लिए स्वतंत्र होता है, जहाँ माता-पिता खुशी-खुशी उसे खाना खिलाते हैं, लेकिन बस इतना भर ही। वहाँ बच्चों को आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना होता है। लेकिन भारत में, परिवार की हमारी अवधारणा ही अलग है। हमारी पूरी व्यवस्था में खानदान का बहुत ऊँचा और गौरवपूर्ण स्थान है। कारोबार की दुनिया में, यह कहने की बात ही नहीं है कि भारत में लाभ में चल रहे 99 फीसद कारोबार परिवारों द्वारा चलाए जाते है। पारंपरिक कारोबारों के बारे में सोचिए, तो आपके जेहन में बस बनिया व्यावसायियों की छवि उभरेगी जो एक पारिवारिक इकाई के रूप में काम करते हैं लेकिन अपने हिसाब-किताब में पक्के होते हैं।"

"स्टार्ट-अप की दुनिया में भी, एकमात्र लाभदायक, बूटस्ट्रैप्ड व्यवसाय- ऐसे कारोबार जिनमें महज अपने ही संसाधन और पूंजी आदि का इस्तेमाल किया गया हो - भाइयों द्वारा या पति-पत्नी की जोड़ी या एक परिवार द्वारा चलाया जाता है। महज इसलिए कि आपके व्यवसाय में पूंजी अमेरिका से आ रही है, आपको मैनेजमेंट में भी उनके सिद्धांत अपनाने की जरूरत नहीं है कि व्यवसाय में परिवार को शामिल नहीं किया जाना चाहिए।" अश्नीर ग्रोवर जीरोधा के फाउंडर निखिल कामत की काफी इज्जत करते हैं, उन्हें ऐसे व्यवसाय अच्छे लगते हैं जो बूटस्ट्रैप्ड हो।  

"मेरे विचार से, भारत में संबंधित पक्ष के लेन-देन (रिलेटेड पार्टी ट्रॉजेक्शन) की अवधारणा पूरी तरह से अप्रासंगिक है। अगर मैं परिवार के साथ काम करता हूँ, तब भी मैं उन्हें बाज़ार के समान दर ही दूँगा और वही प्रोडक्ट हासिल करूँगा। इसमें मुझे अतिरिक्त लाभ यह भी है कि परिवार का कोई सदस्य मेरे साथ व्यवसाय में कम मुनाफे में भी काम कर सकता है या वे मुझे उधार देने का जोखिम उठा सकते हैं। भारत जिस तरह की इकोनॉमी है, वहाँ हर हालत में हर काम आर्म्स लेंथ पर ही होता है- आख़िर धंधा, धंधा है और रिश्तेदारी, रिश्तेदारी। ऐसे में परिवार के साथ काम करने में आपको जरा भी संकोच नहीं होना चाहिए।"

"इसके साथ ही आपको याद रखना होगा कि अच्छे वक्त में आपको वफ़ादारी या निष्ठा की ज़रूरत नहीं होती - अवसर यह काम कर देता है।"

"निष्ठा की परीक्षा बुरे समय में होती है। अपने इन्वेस्टर्स या कर्मचारियों से बुरे वक्त में निष्ठा की उम्मीद करने का मतलब है आप ख़ुद को दिल टूटने जैसी स्थिति के लिए तैयार कर रहे हैं। आख़िरकार, लोगों की असली प्रेरणा उनकी अगली तनख्वाह होती है। इसका अर्थ है कि आपको सही लोगों का चुनाव करने में अत्यधिक सावधान रहना होगा- यह एक ऐसी चीज है जो मैंने अपनी कहानी में हर जगह रेखांकित किया है। मैंने जितनी भी नियुक्तियाँ गलत की थीं, वह सब मुझ पर भारी पड़ीं।"

"बुरे वक्त में आपको अपने साथ सिर्फ परिवार ही खड़ा मिलेगा। आप बीस साल पुराने अपने दोस्तों पर भी भरोसा नहीं कर सकते - वे लोग आपकी स्थिति पर पूरी तरह चुप्पी साध सकते हैं। यदि आप अपने जीवनसाथी के साथ काम करना चुनते हैं, तो उन्हें को-फाउंडर्स के रूप में नॉमिनेट करने और साथ ही उन्हें उनकी योग्यता के आधार पर बोर्ड में सीट देने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। यह भी सच है कि वे आपकी कामयाबी से जुड़े हैं तो आपकी नाकामी का भी सबसे अधिक असर उन्हीं पर होगा।" अश्नीर ग्रोवर ने ऐसा इसीलिए कहा क्योंकि भारतपे में जब उनका बुरा वक्त चल रहा था तब उनकी पत्नी माधुरी ने ही उनका साथ दिया था जबकि उनके बाकी दोस्त भाविक और शाश्वत ने उनके साथ नहीं दिया।

4. ख़ुद की वजह से शहीद न हों: पैसा सबसे पहले फाउंडर के पास आना चाहिए।

"ख़ुद को पहले स्थान पर रखिए, हमेशा! एक फाउंडर के रूप में, हर सेकेंडरी सेल्स के अवसर पर अपने स्टॉक को भुनाने में संकोच न करें। बैंक में मौजूद नकदी से ही आप ज़्यादा मुखर और प्रखर हो पाएँगे। बाद के दौर में अधिक वैल्यूएशन के लिए उसे ऑप्टिमाइज न करें। असल में, एक सामान्य नियम के रूप में, किसी भी सेकेंडरी सेल की आय का कम से कम 80 प्रतिशत फाउंडर्स के पास आना चाहिए। आप ईएसओपी धारकों और एंजेल इन्वेस्टर्स को शेष 20 प्रतिशत सेकेंडरी कैश आवंटित कर सकते हैं। आईपीओ से पहले किसी भी एंजल को उनके मूल निवेश दौर से अधिक देना अच्छा नहीं है। मैंने भारत में किसी भी अन्य फाउंडर की तुलना में अपने एंजल निवेशकों और ईएसओपी धारकों को अधिक कैश एक्जिट दिया है। हालाँकि, इनमें से कोई भी व्यक्ति इतना भी शुक्रगुज़ार नहीं था कि वह सार्वजनिक रूप से मेरे साथ खड़ा होने की हिम्मत भी दिखा पाए। लोगों ने 80-250 गुना रिटर्न कमाया और घर और कारें खरीदीं। मुझे पहले के दौर में बेचने के लिए सचमुच कुछ एंजल इन्वेस्टर्स से भीख माँगनी पड़ी थी - वे इतने लालची थे।"

"इसके साथ ही, यह भी सुनिश्चित करें कि सभी सेकेंडरी सेल केवल आपके ज़रिए ही हो - कभी भी उन्हें खुले बाज़ार में बेचने की गलती न करें।" जब आपके कर्मचारियों की बात आती है, तो उन्हें एक वर्ष के वेतन या उनके निहित शेयरों के 50 प्रतिशत से अधिक की नकदी, जो भी कम हो, की पेशकश न करें।"

"जितना आप अपने व्यवसाय के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, और जितनी भी बार आप इन्वेस्टर्स की अपेक्षा से अधिक प्रदर्शन कर मील के पत्थर हासिल करते हैं उतनी ही अधिक बार शेयरों के लिए इन्वेस्टर्स से पूछना न भूलें। और अंत में, हमेशा टैक्स भुगतान की योजना बनाएँ

5. कुछ पेशों से सावधान रहें।

"अब यहाँ मैं आपको एक ऐसी सीख दे रहा हूँ, जिसके लिए मैं हमलों की जद में आ सकता हूँ। लेकिन महज़ इस वजह से ऐसा नहीं है कि मैं इसे साझा नहीं करूँगा। मेरे अनुभव में, दुनिया में कुछ ऐसे पेशे हैं जो आपसे कीमत वसूलते तो हैं पर बदले में आपको कुछ नहीं देते। मेरी राय में, मूल्यहीनता वाले ऐसे व्यवसायों के चरम छोर पर, ड्रग पेडलिंग, वेश्यावृत्ति और दलाली, बैंकिंग, पत्त्रकारिता और कानूनी पेशे हैं। अपने सबसे बेहतरीन रूप में भी ये पेशेवर और पेशे आपको झूठ-मूठ की सहजता देते हैं। वे आपको क्षण भर में ही सुन्न कर सकते हैं, लेकिन असलियत में अगर आपने उनके साथ थोड़ा ज़्यादा वक्त बिताया तो वे आपको बर्बाद करके मानेंगे। इनसे आपको बेहद सावधान रहने की ज़रूरत है।"

अश्नीर ग्रोवर के आखरी विचार:

"जो भी हो, अगर आप अपने उद्यम को लेकर दृढ़ता से सोचते हैं तो मैं निश्चित रूप से आपको आगे बढ़ने और हर तरह से अपना उद्यम खड़ा करने के लिए प्रोत्साहित करूँगा। आख़िर ऐसा सोचना ही क्यों कि आप कोई गलती कर बैठेंगे। मेरी एकमात्र सलाह यही होगी कि आप सुनिश्चित करें कि आपकी गलतियाँ नई हों, न कि आप मेरी उन गलतियों को दोहरा बैठें, जिनका मैं शिकार हुआ और जिसकी मैंने कीमत चुकाई।"

अश्नीर ग्रोवर का मानना है की एक वाचक(Reader) के रूप में आपका उन पर एहसान है। आपने जितने रुपए खर्च करके उनकी किताब खरीदी उतने रुपए में आप पिज्जा या बर्गर भी खा सकते थे, लेकिन आपने ऐसा नहीं किया।

"जहाँ तक मेरी कहानी की बात है, आप मुझसे प्यार करें या नफ़रत, अगर आप कहानी और इससे मिलने वाले कई सबकों को लेकर सिरे से ही उदासीन नहीं हैं, तो मैं मानूँगा कि आपके साथ अपनी यात्रा को साझा करते हुए मैं कामयाब हूँ।"

धन्यवाद 🙏

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